( बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। )

शुक्रवार, 22 मई 2009

पतन का कारण

ध्यायतः विषयान पुंसः संगः तेषु उपजायते ;
संगात संजायते कामः कामत्क्रोधो अभिजायते।
क्रोधात भवति संमोहः सम्मोहात स्मृति-विभ्रमः ;
स्मृति-भ्रंशात बुद्धि-नाशः बुद्धि-नाशात प्रनश्यति।
अर्थात
मन यानि हमारी इच्छा और संकल्प का आधार ही हमारे दुःख-सुख, हानि-लाभ, भय-क्रोध आदि सभी भावों का एक मात्र अधिष्ठान है। हमारे पास किसी भी तरह की अनुभूति का एक मात्र जरिया है ।
इस बात ऐसे समझो
आप जब खाना खा रहे है तो खाने में मजा क्यों आता है अथवा क्यूँ नहीं आता है ?
हम हर वस्तु ( विषय ) से एक ज्ञानात्मक / संवेदनात्मक सम्बन्ध बनाते रहते हैं , या यूँ कहें कि बनते रहते है।
इन्ही संबंधो का विकास हमारे अन्दर इच्छा के रूप में होता है। यानि हम उसे पाना चाहते है - यही है संग, आसक्ति , वासना ।
सांसारिक जीवन में जितने उत्थान पतन होते हैं -इसी के कारण होता है।
तो क्या मनुष्य इच्छा करना छोड़ दे?
कतई नहीं, हाँ इसके कारण जो भी दुःख-सुख , पीडा , संताप होगा उसे झेलने को तैयार रहे।
संतों का कहना है कि दुःख से बचने की इच्छा करने वाले को सुख का त्याग करना होगा। ऐसा नही हो सकता कि सिर्फ़ सुख ही सुख हो।
दुःख से बचने विकल्प है सुख से भी सामान दूरी बनाने के बाद।
मित्रो!
इच्छा समाप्त करने का महान उपदेश तो मैं नहीं दे पाउँगा तो संयम को मशविरा तो दूंगा। मन , वचन, कर्म - तीनों रूपों में आत्म-नियंत्रण रखने वाला कभी पराजय को नहीं पायेगा।
नहीं, नहीं, यह जीतने का फार्मूला नहीं है - यह है नहीं हारने का नुस्खा, रात को चैन से सोने का रास्ता।

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

उम्मीद है और बेहतर रहेगा...
थोडा़ खुलासा करके लिखें...

शुभकामनाएं....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

nahi balak nahi, narayan narayan

निशांत मिश्र - Nishant Mishra ने कहा…

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दिल दुखता है... ने कहा…

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है...

मीडिया दूत ने कहा…

इच्छा न हो तो किसी चीज का आविष्कार ही न हो