( बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। )

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

अहंकार बोले तो घमंड

घमंड क्या है ?
यह एक मनोदशा है। मानसिक स्थिति है जो एक भावात्मक वैचारिक आधार लेकर टिकी रहती है। जब-जब यह मानसिक स्थिति मनुष्य पर प्रभावी होती है उस-उस समय वह अपने अत्यधिक शक्तिशाली समझता है।
घमंड अहंकार , दंभ , अहम्मन्यता , दर्प आदि सभी समानार्थी पद है। यह स्वाभिमान, गर्व , गौरव, या अभिमान आदि पद से तात्त्विक रूप से भिन्न है।
अपनी स्थिति का समुचित भान होना अभिमान है। स्वयं का बोध व्यावहारिक जीवन के आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। यह कुछ कुछ आत्मविश्वास जैसा होता है। आत्मविश्वास और अभिमान में फर्क बस इतना है कि आत्मविश्वास स्वमुखापेक्षी है और अभिमान पर-मुखापेक्षी। गहरी नींद में और आनंदातिरेक के क्षणों में हम अपने अभिमान को भी विस्मृत कर बैठते हैं। सघन प्यार के क्षणों में किया जाने वाला अर्थ हीन कल्लोल इसी भाव का द्योतक है कि हम उन क्षणों में अपना वजूद तक भुला बैठे हैं।
लेकिन घमंड या अहंकार इसके एकदम उल्टा है। अपने श्रेष्ठ और शक्ति शाली समझना इसका एक पहलू है तो प्रतिपक्ष या सामने वाले तुच्छ और कमजोर समझना दूसरा पहलू। अपने आपको समझदार, समर्थ अथवा शक्तिशाली समझने का हक़ सबको है। लेकिन जो सामने वाले को कमजोर , नाकारा या बेवकूफ समझता है, वह अहंकारी या घमंडी हो जाता है।
संसार हो या वैराग्य - अहंकार को कभी अच्छा नतीजा देने वाला नहीं माना जा सकता क्योंकि अहंकार का मारा मनुष्य कभी भी सामने वाले का सही मूल्याङ्कन कर ही नहीं पाता और अंततः वह न उबर पाने वाली हार की चपेट में आ जाता है। अहंकार सचमुच सबसे बड़ा शत्रु है। अपने विनाश से बचने के लिए सिर्फ हमें अपने घमंड या अहंकार से बचना चाहिए। अहंकार का छोड़ना बुजदिली नहीं, स्वाभिमान को छोड़ना कायरता है। अहंकार और स्वाभिमान में फर्क करें और अपने जीवन में हुए परिवर्तन का सुखद अहसास करें और हमें जरूर बताएं।
संत कबीर की सहज वाणी को याद करें-
ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करे , आपहु को सुख होय।।