( बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। )

बुधवार, 18 मई 2011

जब आये थे बुद्ध

बीत गई कई सहस्राब्दियाँ

जब आये थे बुद्ध ... बताने -सर्वं दुखं दुखं ...

अनुभवों और तपस्याओं से गुजर कर एक राजकुमार

बन गया महात्मा बुद्ध

प्रतीत्यसमुत्पाद की गुत्थी सुलझाते हुए

बताया माध्यम मार्ग जीवन का दो अतियों के बीच से

कृपा की जगह करुणा का पाठ पढाने

सैकड़ों जन्म लेकर वह बोधिसत्त्व

धर्म को

स्वर्ग से उतार कर लाया मनुष्यों की धरती पर

दुरूह वैदिक मन्त्रों से मुक्त करा कर

लोक भाषा में

तत्त्व-कथाओं को बीन-बीन कर निकाला

श्रद्धा की थाली से

दांत के नीचे आने वाले कंकडों की तरह .....


उसी बुद्ध का जन्म दिन है आज

आओ ... शपथ लें कि छोड़ देंगे दुरुहता को

पहुंचेंगे जन-मन तक ....


रविवार, 15 मई 2011

दर्शन और कविता

क्षण और क्षण के बीच भी अंतराल होता है।
उस अंतराल को भी क्षण ही कहना होगा ... और इस तरह अंतराल को खोजते खोजते हम एक तार्किक अनवस्था को प्राप्त होते हैं... और निरुत्तर और अप्रतिभ हो उठते हैं।
इस तार्किक नैराश्य और विवशता के विषण्ण क्षणों में काव्य का उदय होता है .... और संवेग का लास्य इस अंतराल को ढक देता है... हम दार्शनिकता का तिरस्कार कर कवि होने लगते हैं।
कवि होना सहज नहीं , प्रत्युत एक विवशता है।
दर्शन सभ्यता और संस्कृति को ढांचा और आकार देता है ... और कविता तन्यता और चिकनापन देती है।
दर्शन ज्ञान की परम्परा है और कविता ज्ञान का संवेगात्मक विराम।
धर्मवेत्ता लोग ज्ञानमूलक दर्शन से सत्य के स्वरूप को अच्छादित करते हैं ... कवि लोग कविता के माध्यम से सत्य को अनावृत्त करते हैं।
दर्शन और दार्शनिकता ... साधारण जन को भयभीत कर अपना स्थान बनाती है ... कविता और साहित्य ... साधारण जन के रोजमर्रा में अपना स्थान बनाते हैं।
असंबद्ध को संबद्ध करने की क्षमता सिर्फ और सिर्फ प्रेम में है जो कविता का सनातन अवलंब है...
मैं दार्शनिक हूँ ....
मैं कवि होने का अभिलाषी हूँ ....
मैं क्षण और क्षण के बीच के अंतराल को समझना चाहता हूँ.... कविता बनकर समझाना भी चाहता हूँ।