१ काल जीवन की पूर्व-स्थिति है।
२ सत्ता कालातीत है, किन्तु उसका अनुभव काल- सापेक्ष है।
३ जीवन शुद्ध सत्ता नहीं है।
४ जीवन में सत्ता अनिवार्यतः एक असत्ता पर आभासित [प्रतीयमान] होती है।
५ इसीलिए जीवन की समाप्ति की बात की जाती है।
६ जीवन ज्ञानात्मक होने से सत्तात्मक प्रतीत होता है किन्तु समाप्त हो जाने से असत्तात्मक सिद्ध होता है।
७ काल वस्तुतः शुद्ध सत्ता का निषेधक है।
८ जो काल [और देश] में संबोध्य है वह अनिवार्यतः नाशवान है।
९ काल [समय] कोई वास्तु नहीं, एक चैतसिक पूर्वग्रह है जो अज्ञानमूलक अभ्यास का चेतन परिणाम है जो व्यक्ति के अहम्बोध पर हावी हो जाता है।
१० अहम्बोध का तात्पर्य है- स्वयं के ज्ञानवान होने का बोध।
११ अहंकार के नाश होने के साथ ही कालबोध[ समय की अनुभूति] भी तिरोहित हो जाता है।
१२ सत्ता से साक्षात्कार अहंकार का तिरोभाव है।
१३ काल और अहंकार से ही जीवन परिचालित होता है।
निष्कर्ष: जीवन को समझने के लिए अपने अहम्बोध और कालबोध को सम्यक रूप से समझें।
( बुद्धि-विरोधी बाबाओं से सावधान रहना और काम करना सभी जागरूक मनुष्य का कर्त्तव्य है। )
मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011
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1 टिप्पणी:
जीवन ज्ञानात्मक होने से सत्तात्मक प्रतीत होता है किन्तु समाप्त हो जाने से असत्तात्मक सिद्ध होता है।
और हम इस वास्तविकता से दूर ही रहते हैं ..मोह माया में ...आपकी प्रत्येक पंक्ति पूरा जीवन दर्शन है ...आपका शुक्रिया
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